Mundeshwari Temple: अगर आप दुनिया का सबसे पुराना हिन्दू मंदिर देखना चाहते हैं तो आपको बिहार के कैमूर जिले मे कौरा में मुंडेश्वरी पहाड़ियों पर स्थित है स्थित माँ मुंडेश्वरी मंदिर मे आना चाहिए| माँ मुंडेश्वरी मंदिर पूरी तरह रहस्यों से हरा हुआ है|
मुंडेश्वरी मंदिर से प्राप्त ब्राह्मी लिपि मे शिलालेख के अनुसार यह मंदिर 108 ई.पू. पुराना है जो इस मंदिर की प्राचीनता को दर्शाता है| चूंकि ब्राह्मी लिपि का इस्तेमाल शक शासन मे ही किया जाता था इसलिए ऐसा माना जाता है की इस मंदिर का निर्माण भी शक शासन मे हुआ होगा|
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मुंडेश्वरी मंदिर मे स्थित माता की मूर्ति इतनी भव्य है की इस मूर्ति पर आप ज्यादा देर तक नजर नहीं टिका सकते| मुंडेश्वरी मंदिर मे जानवरों की बलि देनी की परंपरा है लेकिन आप जानकर आश्चर्य हो जाएंगे की मुंडेश्वरी मंदिर मे बिना रक्त बहाए जानवरों की बलि दी जाती है|
मुंडेश्वरी मंदिर परिसर में एक पंचमुखी शिवलिंग भी है जो दिन के तीन बार अपना रंग बदलता है| ये पूरा मुंडेश्वरी मंदिर हरी भरी पेड़ों और पहाड़ों से घिरा हुआ है| इस मंदिर तक पहुँचने के लिए आपको लगभग 608 फीट की ऊँचाई की चढ़ाई चढ़नी पड़ेगी|
मंदिर के चारों ओर बिखरे पत्थर, निर्मित सुंदर स्तंभ और मंदिर की दीवारों मे बनी सुंदर नक्काशी इस मंदिर को पूरी दुनिया मे अलग पहचान दिलाती है| इस मंदिर मे स्थापित मूर्तियां उत्तर गुप्त कालीन की हैं और यह सुंदर पत्थर से बना एक अष्टकोणीय मंदिर है|
इस मंदिर मे प्रवेश करते समय बाहर की ओर आपको एक शिलालेख देखने को मिलेगा जिसको पढ़कर आप इस मंदिर के बार मे और ज्यादा जानकारी ले सकते हैं| इस मंदिर के नामकरण के पीछे एक बड़ी रोचक कहानी है| कहानी के अनुसार एक बार पृथ्वी मे चंड और मुंड नाम के 2 राक्षसों का आतंक था|
पृथ्वी वासियों की चीख पुकार सुन माता भवानी ने इन दोनों असुरों का वध करने का निर्णय लिया| माता भवानी ने पृथ्वी लोक मे आकर चंड का वध किया और माता का रौद्र रूप देखकर मुंड डरकर इस पहाड़ी मे छिप गया|
चंड का वध करके माता मुंड का वध करने निकली और उसे ढूंढते ढूंढते इस पहाड़ी तक आ पहुंची और इसी पहाड़ी पर मुंड का भी वध कर दिया| इसलिए यहाँ पर माता के मंदिर का निर्माण किया गया और इस मंदिर का नाम मुंडेश्वरी मंदिर रखा गया|
इस मंदिर मे माँ भवानी वाराही रूप में विराजित हैं जिसमे महिषासुर माता के वाहन बने हैं| इस मंदिर की बनावट इतनी आकर्षक है जिसको देखकर आप अपनी सारी थकान भूल जाएंगे| मंदिर का आंतरिक परिसर चार पायों पर टिका हुआ है| इस मंदिर मे माता से मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है|
दूसरा ये है की जब किसी भक्त की मन्नत पूरी हो जाती है तो वो भक्त इस मंदिर मे बकरे की बली देता है लेकिन इस मंदिर मे बली देने की प्रक्रिया बाकी जगहों से थोड़ा अलग है|
माता की पूजा सम्पन्न होने के बाद बकरे के चारों पैर को मजबूती से पकड़कर पुजारी गर्भगृह मे प्रवेश करता है और बकरे को माता के चरनों को स्पर्श कराता है और कुछ मंत्रों का जाप करते हुये बकरे को लेटाकर माता के चरणों मे अर्पित फूल उस पर चढ़ा देता है फूल चढ़ते ही बकरा अचेत अवस्था मे चला जाता है|
कुछ देर बाद वो बकरा इसी तरह बेहोशी की हालत मे पड़ा रहता है फिर पुजारी कुछ मंत्रों का जाप करके माता के चरणों मे अर्पित एक पुष्प को उठाकर उस बकरे की ओर फेंकते हैं और बकरा ऐसे उठता है जैसे वो अभी नींद से जागा हो और इस तरह इस पवित्र मंदिर मे बिना बेजुबान का खून बहाये बलि की प्रथा पूरी की जाती है|
कुछ इस तरह जगत जननी माता उस बेजुबान प्राणी की कुछ साँसे लेकर उसे उसका जीवन लौट देती हैं|
बलि कि ऐसी सात्विक प्रथा पूरी दुनिया मे आपको किसी भी धर्म मे देखने को नहीं मिलेगी| माता के भक्तों के लिए इससे बड़ा कोई ओर चमत्कार नहीं हो सकता| इस मंदिर का ये पहला चमत्कार है दूसरा चमत्कार ये है की इस मंदिर के गर्भगृह मे स्थित पंचमुखी शिवलिंग दिन के 3 पहर सुबह, दोपहर और शाम को आपको अलग अलग रंग मे दिखाई देता है|
रंग बदलने वाले शिवलिंग विरले ही आपको देखने को मिलेंगे| इस शिवलिंग का रंग कब बदल जाता है इसकी कानों कान खबर किसीको भी नहीं लगती| सोमवार को पुजारी भोलेनाथ का शृंगार करते हैं और भारी संख्या मे भक्तगण जल अर्पण करते हैं|
इस मंदिर का जिक्र आपको मार्कंडेय पुराण मे भी मिलेगा| नवरात्रों के समय इस मंदिर मे भारी संख्या मे भक्त माता के दर्शन को आते हैं| माता के दर्शन सभी को सुलभता से प्राप्त हों इसके लिए 2023 मे राज्य सरकर ने इस मंदिर मे रोपवे बनाने को भी मंजूरी दे दी ही|
रोपवे बनने से यहाँ के जंगलों मे कोलाहल और प्रदूषण कम होगा साथ मे वाइल्ड लाइफ का भी संरक्षण किया जा सकेगा| इस मंदिर मे पहुँचने के लिए आपको 565 सीढ़ियों को पार करना होगा| आप चाहें तो कार या बाइक से भी इस पहाड़ी को सड़क के रास्ते से चढ़ सकते हैं लेकिन 524 फीट की ऊँचाई के बाद फिर आपको 65 सीढ़ियाँ और चढ़नी पड़ेगी|
ये मंदिर बिहार की राजधानी पटना से महज 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है| सबसे पहले ये मंदिर एक चरवाहे के नजर मे आया था| ये मंदिर सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक भक्तों के लिए खुला रहता है|
देश के बाकी प्राचीन मंदिरों की तरह इस मंदिर को भी कट्टर इस्लामिक शासक औरंगजेब ने नष्ट कर करने का प्रयास किया था लेकिन असफल रहा| ऐसा माना जाता है की औरंगजेब ने जिन मजदूरों को इस मंदिर को तोड़ने मे लगाया था अचानक उन सभी के साथ कोई न कोई अनहोनी होने लगी और इसी डर से सारे मजदूर एक एक करके मंदिर परिसर से काम छोड़कर भागने लगें|
इस मंदिर का निर्माण नागर शैली मे किया गया है| वर्ष 1915 के बाद से मुंडेश्वरी मंदिर ए एस आई द्वारा एक संरक्षित स्मारक घोषित है| ये मंदिर देश विदेश से भक्तों को आकर्षित करता है| इस मंदिर मे आकर आपको एक सकारात्मक शांति का अनुभव होगा|
इस मंदिर की लगभग 100 मूर्तियाँ जो की बेहद दुर्लभ हैं उनकी सुरक्षा के लिए 1968 में पुरातत्व विभाग ने 97 मूर्तियों को पटना के संग्रहालय और बची हुई 3 को कोलकाता संग्रहालय मे रखवा दिया था| आपको जानकर हैरानी होगी की मुंडेश्वरी माता मंदिर का संरक्षक एक मुस्लिम परिवार है|
भारतीय और बिहार सरकार इस मंदिर को यूनेस्को की लिस्ट में भी शामिल कराने का प्रयास कर कर रही है| इस मंदिर को वर्ष 2007 में बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद ने अधिग्रहित कर लिया था और उसके बाद से मंदिर के आस पास किए गए सभी विकास के कार्य में धार्मिक न्यास परिषद द्वारा कराए जाते हैं|
इस मंदिर मे हर वर्ष 3 बार मेला भी लगता है| इस मंदिर बहुत सारा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो चुका है जिसका अब जीर्णोद्धार किया जा रहा है| माता पिता अपने बच्चों का मुंडन संस्कार भी कराने इस पवित्र मंदिर मे आते हैं|
मुंडेश्वरी मंदिर की उम्र (Mundeshwari Temple Age)
इस मंदिर का निर्माण 108 ई.पू. मे हुआ था|
मुंडेश्वरी मंदिर का मैप (Mundeshwari Temple Map)
मुंडेश्वरी मंदिर तक कैसे पहुँचें (How To Reach Mundeshwari Temple)
मुंडेश्वरी मंदिर तक पहुँचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा 102 किलोमीटर की दूरी पर स्थित उत्तर प्रदेश मे वाराणसी का लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है और नजदीकी रेलवे स्टेशन भभुआ रोड स्टेशन है जो मुंडेश्वरी मंदिर से महज 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है| अगर आप भभुआ रोड के लिए ट्रेन टिकट बुक करना चाहते हैं तो यहाँ पर क्लिक करें|
मुंडेश्वरी मंदिर का सबसे अच्छा समय (Best Time To Visit Mundeshwari Temple)
इस मंदिर के आस पास गर्मी और सर्दी दोनों अत्य अधिक पड़ती है इसलिए यहाँ पर आने का सबसे अच्छा समय फरवरी से मार्च और सितंबर से नवंबर के बीच का रहता है|
Q1- मुंडेश्वरी मंदिर के पीछे क्या कहानी है?
A- चंड मुंड 2 राक्षसों मे से माता भवानी ने यहाँ पास मुंड का वध किया था|
Q2- मुंडेश्वरी मंदिर का निर्माण कब हुआ था?
A-108 ई.पू. मे
Q3- मुंडेश्वरी मंदिर कितनी ऊँचाई पर स्थित है?
A- 608 फीट
Q4- मुंडेश्वरी मंदिर किसके शासन काल मे बना था?
A- शकों के शासनकाल मे
Q5- मुंडेश्वरी मंदिर मे किस इस्लामिक शासक ने हमला किया था?
A- औरंगजेब ने