अढ़ाई दिन का झोपड़ा (Adhai Din Ka Jhopra)- मंदिर और स्कूल को तोड़कर बनी एक मस्जिद

Adhai Din Ka Jhopra: अगर आप देश के सबसे पुरानी मस्जिदों की एक सूची बनाएगें तो उसमे अजमेर स्थित अढ़ाई दिन का झोपड़ा का नाम जरूर उसमे आएगा| भारत वर्ष की ये एक ऐतिहासिक मस्जिद है जो अजमेर शरीफ की दरगाह से कुछ ही दूरी पर स्थित है| ASI ने इसे एक ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया हुआ है|

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इस मस्जिद का निर्माण वर्ष 1198 मे दिल्ली के पहले सुल्तान कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने करवाया था| मूल रूप से देखा जाए तो ये मस्जिद मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी| मस्जिद के निर्माण मे मंदिर के अवशेष स्पष्ट रूप से देखेँ जा सकते हैं|

अढ़ाई दिन का झोपड़ा अजमेर का सबसे पुराना स्मारक है| वर्ष 1192 मे मुहम्मद गौरी के आदेश पर कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने इस मंदिर को नष्ट करके वर्ष 1198 मे मस्जिद का निर्माण करवाया था| इसके नाम मे अढ़ाई दिन से तात्पर्य इसमे लग रहे एक मेले से है जो केवल अढ़ाई दिन का ही लगता था|

साथ मे ऐसा भी माना जाता है की ये मस्जिद बनने मे केवल 60 घंटे का समय लगा था ऐसा इसलिए की गौरी ने ऐबक को मस्जिद बनाने के लिए इतना ही समय दिया था| अगर आप इस मस्जिद को देखने पहुंचते हैं तो ध्यान से देखने पर आपको पता चलेगा की इस मस्जिद मे कुल 70 खंभे हैं और इन्ही 70 खंभों मे वो प्राचीन मंदिर टिका हुआ था|

प्रत्येक खंभे की ऊँचाई 25 फीट है| इन खंभों मे सुंदर नक्काशी की गई है जो कहीं से भी इस्लामिक प्रतीत नहीं होती| आप भरोसा नहीं करेंगे की 90 के दशक तक हमारी प्राचीन और पवित्र मूर्तियाँ ऐसी ही यहाँ वहाँ बिखरी पड़ी थी बाद मे उन मूर्तियों को संरक्षण प्रदान किया गया|

इस मस्जिद का अंदर का हिस्सा आप देखेंगे तो पाएंगे की ये पूर्णतः एक मंदिर ही था| मंदिर के साथ यहाँ पर एक मशहूर संस्कृत स्कूल भी था जिसका निर्माण विग्रह राज चौहान चतुर्थ द्वारा किया गया था| मंदिर के बाहर आपको एक शिलालेख मिलेगा जहां इसके संस्कृत स्कूल होने का वर्णन है जिसका नाम नाम सरस्वती कंठ भरण था।|

इस मस्जिद का डिजाइन अफ़्ग़ानिस्तान के हेरात शहर के अबू बकर ने तैयार किया था| इस मंदिर को तोड़ने का कोई और कारण नहीं बल्कि मोहम्मद गौरी का हिन्दुओ और उनकी शिक्षा के प्रति नफरत थी| वो जहां भी मंदिर देखता उसे तोड़कर अपना इस्लामिक ढांचा बना देता था|

ऐसा ही उसने जब एक संस्कृत स्कूल देखा तो अनपढ़ जाहिल और जिहादी मानसिकता वाले क्रूर शासक को वो लता फूलता स्कूल देखा नहीं गया और उसने अपने सेनापति कुतुब-उद-दीन-ऐबक को इस खूबसूरत इमारत को तोड़कर मस्जिद खड़ी करने का आदेश दे दिया|

गौरी के बाद आगे चलकर एक और इस्लामिक शासक शमशुद्दीन इल्तुतमिश ने इस मस्जिद का सौंदर्यीकरण करवाया था| इस खंडहर इमारत में आपको 7 मेहराब हैं| ये मस्जिद अजमेर की दरगाह से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थित है| 

अब आते हैं इसमे स्थापित मंदिर मे| ऐसा कहा जाता है की जिस मंदिर को तोड़ा गया था वो एक जैन मंदिर था जिसका निर्माण 6वीं शताब्दी में सेठ वीरमदेव काला द्वारा किया गया था| अजमेर के उप महापौर नीरज जैन ने भी इस मस्जिद को पुराने स्वरूप मे लौटाने की मांग की है|

उन्होंने दावा किया है की 250 से ज्यादा मूर्तियों को यहाँ से निकालकर संग्रहालय मे संरक्षित किया गया है इसके अलावा उन्होंने मस्जिद परिसर मे स्वस्तिक, घंटियां और संस्कृत श्लोकों की मौजूदगी का भी दावा किया है|

7 मई 20024 को जैन मुनि सम्मानिया आचार्य सुनील सागर महाराज जी अपने 30 अनुयायियों और 100 से ज्यादा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ताओं के साथ अढ़ाई दिन का झोपड़ा पहुंचे।

उन्होंने इस पूरे झोंपड़े को घूमा और अपने साथ आए सभी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया और साफ लफ्जों मे बोला की जो वस्तु जिस समाज की है उसे वो वस्तु उस समाज को ससम्मान लौट देना चाहिए| प्लेसेस ऑफ वर्शिप ऐक्ट 1992 के अनुसार 1947 के बाद किसी भी जगह का रूप नहीं बदला जा सकता जो जैसा है वो वैसा ही रहेगा|

देश मे एक वर्ग ऐसा है की जो चाहता है की देश को मंदिर मस्जिद से ऊपर बढ़ना चाहिए और दूसरा वर्ग ऐसा है जो सोचता है पवित्र मंदिरों को तोड़कर जहां पर मस्जिदें बनाई गई थीं वहाँ पर वापस मंदिर निर्माण होना चाहिए|

आपकी भी अपनी सोच हो सकती है| देखा जाए तो 1991 मे भारत सरकर ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप ऐक्ट लाकर सभी विवादों को खत्म करने का प्रयास किया था| ताकि लोग धर्म से ऊपर सोचें लेकिन एक लोकतान्त्रिक देश मे अगर एक वर्ग अपनी बात को कोर्ट के सामने नहीं रखेगा तो कहाँ रखेगा| 

प्लेसेस ऑफ वर्शिप ऐक्ट 1991 एक आम आदमी को अपनी बात रखने के लिए अदालत तक जाने से रोकता है| अगर आप चाहते हैं की आम आदमी धर्म के ऊपर सोचे उसके लिए आपको उस तरह का माहौल बनाना होगा उस तरह की शिक्षा देनी होगी लेकिन एक लोकतान्त्रिक देश मे आप उसको अदालत तक जाने से नहीं रोक सकते|

इसलिए इस काले कानून को जो पूरी तरह से देश मे रह रहें हिन्दुओ के खिलाफ था उसको सुप्रीम कोर्ट मे चैलेंज किया जा चुका है और ऐसी उम्मीद की जा रही है की बहुत जल्द माननीय सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई करके इस काले कानून को निरस्त करेगा|

अढ़ाई दिन का झोपड़ा कैसे पहुँचें (How To Reach Adhai Din Ka Jhopra)

अजमेर का नजदीकी हवाई अड्डा 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित किशनगढ़ हवाई अड्डा है और नजदीकी रेलवे स्टेशन अजमेर का ही रेलवे स्टेशन है| अगर आप अजमेर के लिए ट्रेन टिकट बुक करना चाहते हैं तो यहाँ पर क्लिक करें|

अढ़ाई दिन का झोपड़ा का मैप (Adhai Din Ka Jhopra Map)

Q1- अढ़ाई दिन का झोपड़ा (Adhai Din Ka Jhopra) कौन बनवाया था?

A- कुतुब-उद-दीन ऐबक ने

Q2- राजस्थान की पहली मस्जिद कौन सी थी?

A- अढ़ाई दिन का झोपड़ा (Adhai Din Ka Jhopra)

Q3- अढ़ाई दिन का झोपड़ा (Adhai Din Ka Jhopra) किसकी रचना है?

A- कुतुब-उद-दीन ऐबक की

Q4- अढ़ाई दिन का झोपड़ा (Adhai Din Ka Jhopra) क्यों कहा जाता है?

A- क्यूँ की इसके पास अढ़ाई दिन का एक मेला आयोजित किया जाता था|

Q5- अढ़ाई दिन का झोपड़े मे कुल कितने खंभे हैं?

A- 70 खंभे

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