Asirgarh Fort Burhanpur: अगर ऐसा कहें की ये किला मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा अजूबा है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी| ये एक अजेय किला है जिसे किसी भी राजा ने अपनी ताकत से इसे कभी नहीं जीता, जिसने भी इस किले को जीता छल कपट से ही जीता है| यह किला मुख्य बुरहानपुर शहर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर सतपुड़ा की पहाड़ियों पर स्थित है|
इस अद्भुत किले का निर्माण 15वीं शताब्दी में अहीर राजा आसा अहीर नाम के एक राजा ने करवाया था| मुग़लों के समय मे असीरगढ़ से दिल्ली तक का क्षेत्र हिंदुस्तान कहलाता था और असीरगढ़ के नीचे का क्षेत्र दक्कन कहलाता था और ऐसा माना जाता था की जिसको भी दक्कन मे शासन करना है उसको असीरगढ़ किले मे कब्जा करना अनिवार्य था|
इस किले के इसी महत्व को देखते हुए इसे “दक्कन की चाभी” भी कहा जाता था| बाद मे फिरोजशाह तुगलक के सिपाही मलिक रज़ा फ़ारूक़ी के पुत्र नसीर खान ने धोखे से आसा अहीर की हत्या करके इस किले को कब्जा लिया था|
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इस किले की वास्तु मे आपको इस्लामी, फारसी, तुर्की और भारतीय शैलियों का मिश्रण देखने को मिलेगा| इस किले की पानी की आपूर्ति को पूरा करने के लिए 5 तालाब और 2 कुंडों का निर्माण किया गया था जिसमे से 3 मानव निर्मित तालाब थे| इस किले के अंदर आपको चारों ओर गुफाएँ और सुरंग देखने को मिलेनी जो किले की सुरक्षा के लिए बनाई गई थीं।
इन सुरंगों के सहायत से आप किले के दूर दूर तक हिस्सों में आसानी से पहुंच सकते हैं और यहाँ से अपने दुश्मनों के हमलों से भी बच सकते हैं| यह किला अपने आधार से लगभग 259 .1 मीटर ऊंचा है और समुद्र तल से लगभग 701 मीटर ऊंचा है। इस किले मे 3 तीन चहारदीवारियां हैं मतलब यह किला 3 भागों मे बटा हुआ है|
पहले भाग को “असीरगढ़” कहा गया है दूसरे भाग को “कमगरगढ़” और तीसरे भाग “मलयगढ़” कहा गया है| असीरगढ़ तक पहुँचने के लिए आपको पहले मलयगढ़ फिर कमगरगढ़ को पार करना पड़ेगा| इस किले का वर्तमान रंग रूप मुग़लों की देन है| ये किला कई लड़ाइयों और सदियों का इतिहास अपने अंदर दफन किये हुए हैँ|
इस किले तक पहुँचने के लिए 2 रास्ते बनाये गए हैं| पहला रास्ता पूर्व से है जो सरल है लेकिन इसमे आपको 1000 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ेगी ये पूरा रास्ता सतपुड़ा के हरे भरे पेड़ों से भरा हुआ है और पूरा रास्ता बेहद ही रोमांचक है और दूसरा है उत्तर का रास्ता जो वाहनों के लिए है लेकिन रास्ता बहुत खराब है|
इस किले की देखरेख अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कर रहा है| ये अद्भुत और महान किला लगभग 60 एकड़ मे फैला हुआ है| इस किले मे आपको सेना के ठहरने के लिए जगह, मस्जिद, मंदिर और तालाब सबकुछ देखने को मिलेगा| इस किले के आस पास 17 गाँव थे जो किले की हर जरूरतों को पूरा करते थे|
इस किले मे आपको कई सुरंगे देखने को मिलेंगी जो कहाँ निकलती हैं किसी को भी नहीं पता| इस किले का शिखर लगभग 3 किलोमीटर मे फैला हुआ है|
खुदाई मे क्या मिला?
स्थानीय निवासियों का मनाना है की इस किले का रहस्य कभी खत्म नहीं होता| निरीक्षण करने गई टीम को हर बार कुछ न कुछ नया मिलता है| कुछ सालों पहले इस किले के पश्चिमी दिशा मे खुदाई की गई थी उसमे सर्वेक्षण टीम को एक महल मिल था जो वहाँ की रानी को समर्पित था|
इस सुंदर महल के अंडरग्राउन्ड मे टीम ने 20 गुप्त कमरों का भी पता लगाया था| ये महल 100*100 का था| इस महल मे एक स्वीमिंग पुल भी मिला था| इस महल की गहराई लगभग 20 फीट थी| यह महल ईंटों से बना हुआ था| खुदाई मे महल के अलावा एक जेल भी मिली थी|
असीरगढ़ किले का महाभारत कनेक्शन-
अगर आपने महाभारत देखी होगी तो आपको कौरवों की तरफ से लड़ रहे अश्वत्थामा जरूर याद होगा| जी बिल्कुल ये वही अश्वत्थामा है जो गुरु द्रोणाचार्य और कृपि के पुत्र थे जिनका जन्म देवाधिदेव महादेव के आशीर्वाद से हुआ था| अश्वत्थामा एक महापराक्रमी योद्धा थे|
युद्ध मे मारे गए अपने पिता द्रोणाचार्य के मौत का बदला लेने के लिए उसने पांडवों के 5 पुत्रों की हत्या कर दी थी और साथ मे उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को भी जान से मारने का प्रयास किया| वासुदेव भगवान श्री कृष्ण ने परीक्षित की रक्षा की और अश्वत्थामा के इस भयानक कृत्य को देखते हुए उसे अनंतकाल तक कोढ़ी बनकर भटकने का श्राप दे दिया था|
उसका पूरा शरीर खून और मवाद से सना रहता है इसलिए वो दूर जंगलों मे रहता है और वो किसी से भी बात नहीं करता| ये हुई महाभारत के एक योद्धा की कहानी| अब आते हैं वर्तमान समय पर और पहुंचते हैं बुरहानपुर मे स्थित असीरगढ़ किले मे|
असीरगढ़ किले मे एक महाभारत काल के समय से 5000 साल पुराना शिवलिंग है जिसे गुप्तेश्वर महादेव कहा जाता है| इसी असीरगढ़ किले के शिखर पर एक कुंड भी है जो झुलसा देने वाली गर्मी मे भी नहीं सूखता है| आप जानकर आश्चर्य मे पड़ जाएंगे की इस 5000 साल पुराने शिव मंदिर मे कोई रोज ब्रह्म मुहूर्त में पूजा करके और ताजे गुलाब का फूल चढ़ाकर जाता है|
ये एक ऐसी प्रक्रिया है जो रोज सम्पन्न होती है और किसी भी आम आदमी को कोई खबर नहीं लगती| ऐसा माना जाता है की ये पूजा कोई और नहीं बल्कि अश्वत्थामा करते हैं जो शिखर बने कुंड मे स्नान करते हैं उसके बाद शिव पूजा करते हैं| कुछ लोगों ने तो अश्वत्थामा को इस किले के आस पास देखने का भी दावा किया है|
कुछ न्यूज वाले इस किले मे रात मे भी रुके उनको एहसास हुआ की जून की भरी गर्मी मे भी ब्रह्म मुहूर्त में यहाँ ठंड पड़ने लगती है| वो मंदिर के पास भी रुके लेकिन उन्हे केवल भगवान पर चढ़े फूल ही नजर आए फूल चढ़ाने वाला नहीं| इस किले मे आपको किले की देवी आषादेवी की मूर्ति और उनका प्राचीन मंदिर भी देखने को मिलेंगे|
असीरगढ़ किले का मुग़लों से कनेक्शन-
मुग़लों से पहले ये किला हमेश दिल्ली सल्तनत के हांथों मे था| फिर एक समय आया फिरोजशाह तुगलक का| फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल मे मलिक रज़ा फ़ारूक़ी खानदेश का सेनापति बनता है| 1398 ईस्वी मे फिरोजशाह तुगलक की कमजोरी का फायदा उठाकर उसने फरुकी वंश की स्थापना की|
फरुकी वंश की स्थापना करते ही मलिक रज़ा फ़ारूक़ी का वर्चस्व तेजी से आस पास बढ़ने लगा और इसी मलिक रज़ा फ़ारूक़ी के बढ़ते वर्चस्व के कारण असीरगढ़ के राजा आसा अहीर ने फ़ारूक़ी की अधीनता स्वीकार कर ली| चूंकि आसा अहीर ने इस किले मे बहुत सारा अनाज और धन दौलत के विशाल भंडार बनाकर रखे थे इसलिए वो फ़ारूक़ी की हर तरह से सहायता भी करते थे|
समय का पहिया और मलिक रज़ा फ़ारूक़ी के पुत्र ने मलिक नासिर फ़ारूक़ी ने आसा अहीर से ये किला छल कपट से छीनने की योजना बनाता है| उसने आसा अहीर से निवेदन किया की उसे आस पास के राजाओं से खतरा है इसलिए उसे और उसके परिवार को कुछ समय के लिए इस किले मे रहने दिया जाए|
आसा अहीर ने मलिक नासिर फरुकी की चाल को समझ न पाए और उसके निवेदन को स्वीकार कर लिया| उसने आसा अहीर को संदेश भिजवाया की दो सौ डोलियों मे वो और उसका परिवार असीरगढ़ पहुँच रहे हैं|
जैसे ही आसा अहीर उन डोलियों का सत्कार करने बाहर आयें तो उन्ही डोलियों से उतरे हथियारबंद सैनिकों ने आसा अहीर और उनके परिवार को मार डाला और नासिर फ़ारूक़ी ने असीरगढ़ किले मे अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया|
कपटी मलिक नासिर फरुकी ने असीरगढ़ किले पर कब्जा किया और अपने गुरु बुरहानुद्दीन साहब के नाम पर बुरहानपुर शहर का निर्माण और इसी शहर को अपनी राजधानी बनाया| ये विशाल किला बुरहानपुर से नजदीक था इसलिए जब भी कुछ बाहरी राजाओं का इस शहर मे आक्रमण होता तो बुरहानपुर के लोग इस किले मे आकार शरण ले लेते थे|
नासिर फरुकी के बाद उसके वंशज राजा अली खान के हाँथों मे ये किला रहा| राजा अली खान ने ही इस किले मे 1588 मे जाम मस्जिद का निर्माण करवाया था| अब तक ये किला फरुकी वंश के हाँथों मे ही था और नासिर का वंशज राजा अली खान अकबर की बड़ी सेना और ताकत से अच्छी तरह परिचित था|
इसलिए भविष्य को देखते जुए उसने अकबर के साथ रिश्तेदारी स्थापित करके आपस मे संबंध और मजबूत कर लिए| राजा अली खान ने अपनी बेटी का निकाह अकबर के पुत्र शहजादा मुराद से कर दिया और खुद अली खान ने भी अकबर के मित्र अबुल फ़ज़ल की बहन से शादी कर ली|
अली खान ने इस रिश्तेदारी को बहुत शिद्दत से निभाया| समय का पहिया फिर से आगे बढ़ता है और अब असीरगढ़ की कमान आती है अली खान के पुत्र कद्र खान ने| राजा बनते ही कद्र खान का नाम बहादुर खान हो गया|
वैसे तो बहादुर खान ने कई गलतियाँ की जैसे राजा बनाने के बाद दिल्ली मे अकबर के सामने न पेश होना या अकबर को कोई उपहार न भेजना| असल मे हुआ क्या था की अकबर का दक्कन का कैम्पेन उसका बेटा मुराद देख रहा था और बहादुर खान ने दक्कन कैम्पेन मे मुराद का साथ देने से साफ मना कर देता है|
इन्ही सब बातों के बीच 12 मई 1599 को दक्कन मे ही मुराद की मौत की खबर आती है और तब दक्कन की जिम्मेदारी अकबर के दूसरे पुत्र शहज़ादे दानियाल को दे जाती है| 1600 मे दानियाल बहादुर खान से मिलने बुरहानपुर पहुंचता है लेकिन बहादुर खान दानियाल से मिलने से साफ इनकार कर देता है| अब अकबर की तिरछी नजर आसिरगढ़ के किले मे पड़ती है|
बहादुर खान अपने पिता अली खान की तरह मुग़लों की अधीनता स्वीकार करने से इनकार कर देता है| तब अकबर ने सन 1600 में शेख़ फ़रीद को बुरहानपुर भेजता है| ये वही शेख फरीद था जिसने 1607 मे फ़रीदाबाद शहर बसाया था| शेख़ फ़रीद ने इस किले को देखकर जो शब्दों मे लिखा है उसे हर एक इतिहास प्रेमी को पढ़ना चाहिए|
वो लिखता है की “जहाँपनाह, ये किला है या कुछ और है| ऐसा किला हमने अपने पूरे अपने जीवन मे नहीं देखा है| इस किले की कितनी भी घेराबंदी कर लें इसे बिना अच्छी किस्मत के जीता नहीं जा सकता| हमने जो किले हिंदुस्तान के बाहर देखेँ हैं ये किला उनसे बहुत अलग है| इसमे न अंदर जाने का रास्ता दिख रहा है और न ही बाहर आने का|
इस किले के आगें 3 और किले हैं| किले के बाहर 1300 तोपों को लगाया गया है| इस किले मे कितना अनाज भंडार किया गया है उसको किसी को अंदाजा नहीं है| किले की दीवारों पर बड़े बड़े तेल के कढ़ाहो को लगाया गया है जिससे 30 मन तेल गरम कर आक्रमणकारियों के ऊपर फेंका जाता है| इस किले को घेराबंदी करके कब्जा कर पाना असंभव है”|
किले को जीतने के मकसद से 8 अप्रैल 1600 को अकबर खुद बुरहानपुर पहुंचा और पूरी किले को घेर लिया| ये किला अकबर की जरूरत थी क्यूँ की हम पहले ही बता चुके हैं की इस किले को दक्कन की चाभी कहा जाता था| इसलिए अकबर को दक्कन पर कब्जा करने लिए इस किले को जितना जरूरी था|
जनवरी 1600 से चालू हुई इस किले की घेराबंदी दिसंबर तक चली| इस दौरान कई सारी तोपें भी मारी गई और बारूद से सुरंग मे विस्फोट भी किया गया फिर भी इस किले का कुछ नहीं हुआ| इन 11 महीनों के दौरान न कोई अंदर गया और न ही कोई बाहर आया| मुग़ल सेना इस गलतफहमी मे थी की जब अनाज खत्म होगा तो बहादुर खान खुद बाहर आएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ|
आखिरकार बहादुर खान इस किले के बाहर आया और 21 दिसम्बर को अकबर और बहादुर ख़ान की मुलाक़ात हुई जिसमे संधि के लिए बात की गई| आखिरकार 17 जनवरी 1601 को अकबर ने इस किले को कब्जा लिया| अब मुद्दा ये है की आखिरकार बहादुर खान किले से बाहर ही क्यूँ आया इसका सटीक कारण आज तक पता नहीं चला|
हालाकी ऐसा माना जाता है की शांति संधि के बहाने बहादुर खान को बाहर लाया गया था फिर उसे बंदी बना लिया गया था लेकिन इसका भी कोई पुख्ता सबूत नहीं मिलता|
21 दिसंबर से 17 जनवरी के बीच एक और घटना इस किले मे घटती है जिसे आपको बताना जरूरी है| 21 दिसंबर के बाद बहादुर खान ने अपने एक जनरल मुकर्रिब खान को वापस किले मे भेजता है ताकि वो बाकी शाही परिवार के बचे हुए लोगों को आत्मसमर्पण के लिए मना सके|
जब मुकर्रिब खान किले मे घुसा और अपनी बात रखने लगा तो किले के सरदार याकूत खान ने कहा की “गद्दार तूने हमारे बादशाह को अकबर के हाथों बंदी बनवा दिया है और अब तू हमसे किला खाली करने की जिद कर रहा है”| याकूत खान और कोई नहीं बल्कि इसी जनरल मुकर्रिब खान का बाप था|
अपने पिता के मुंह से इस तरह की कड़वी बातें सुनकर मुकर्रिब खान ने अपने ही कतार को अपने सीने मे घोंप दिया| इसके बाद याकूत खान ने शाही परिवार के बचे हुए लोगों को खानदेश का उत्तराधिकारी घोसित करने का लगातार प्रयास करता रहा लेकिन अकबर के डर से किसी मे भी खानदेश का राजा बनने की हिम्मत नहीं हुई|
फारुकी वंश के राजाओं की कायरता से तंग आकर याकूत खान ने जहर पीकर जान दे दी|
आखिरकार 17 जनवरी 1601 को असीरगढ़ अकबर का हो गया| कुछ बातों मे आप यकीन नहीं करेंगे की 11 महीने तक पूरी सेना किले के अंदर खाना खाती रही फिर भी अनाज भंडारण का 10% भी खत्म नहीं हुआ था|
अगले 1 साल तक मुग़लों के 40 हज़ार हाथी और घोड़े इस किले पर तैनात रहे और खाते रहे फिर भी यहाँ का भंडारण खत्म नहीं हुआ| इस किले मे अनाज के अलावा दवाइयों, क़ीमती शराब और जड़ी बूटियों का अम्बार लगा हुआ था| इस किले को पूरा खाली कराने मे 7 दिन लग गए|
इतिहासकार बताते हैं की इस किले की भव्यता को किसी भी भाषा मे वर्णन नहीं किया जा सकता| इसकी भव्यता देखना है तो किले मे आपको एक बार आना होगा|
1601 से अकबर के कब्जे के बाद 1731 तक यह किला मुगलों के अधीन रहा| इसके बाद कुछ समय तक इसमे हैदराबाद के निजाम का अधिकार रहा| 1760 से 1819 तक यह मराठा पेशवाओं के कब्जे मे रहा| किले मे स्थापित गुप्तेश्वर महादेव शिव मंदिर का जीर्णोद्धार मराठा शासन मे ही हुआ था| 1830 के आसपास के आस पास ये किला सिंधिया परिवार की शान बढ़ाता रहा|
असीरगढ़ किले का अंग्रेजों से कनेक्शन
1857 आते आते ये किला अंग्रेजों के पास चला गया जिसका उपयोग अंग्रेजों ने 1904 तक छावनी के रूप मे किया और 1904 के बाद जेल के लिए इस किले का उपयोग करते रहे| अंग्रेजों ने इस किले से पूरे मालवा प्रांत, दक्षिण भारत और महाराष्ट्र जैसे मजबूत राज्यों पर अपना नियंत्रण बनाए रखा|
इस किले मे स्थित ईसाई कब्रिस्तान का निर्माण अंग्रेजों ने ही करवाया था| अंग्रेजों ने इस किले मे 1857 के भटिंडा के कूमा प्रजाति के महान क्रांतिकारी रूर सिंह, पहाड़ सिंह और मुलुक सिंह को कैद करके रखा था बाद मे इन क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई थी|
ये किला मध्य प्रदेश और भारत सरकार की एक महान धरोहर है जिसे किसी भी हालत संरक्षित किया जाना चाहिए|
असीरगढ़ किले तक कैसे पहुंचे
ये किला बुरहानपुर मे स्थित है| इसको देखने के लिए आपको बुरहानपुर आना होगा| अगर आ[ बुरहानपुर के लिए ट्रेन टिकट बुक करना चाहते हैण तो यहाँ पर क्लिक करें| अगर आप फ्लाइट से बुरहानपुर आना चाहते हैं तो आपको 190 किलोमीटर दूर इंदौर हवाई अड्डे मे उतरना होगा|
Q1- असीरगढ़ किले का निर्माण कब और किसने करवाया था?
A- आसा अहीर ने 15 वीं शताब्दी मे
Q2- असीरगढ़ किला किस पर्वत पर स्थित है?
A- सतपुड़ा की पहाड़ियों पर
Q3- असीरगढ़ किले का सबंध महाभारत काल के किस योद्धा से है?
A- अश्वत्थामा से
Q4- असीरगढ़ किले मे स्थित शिव मंदिर का नाम क्या है?
A- गुप्तेश्वर महादेव मंदिर
Q5- आसा अहीर को छल से किसने मारा था?
A- मलिक नासिर फ़ारूक़ी ने