Raisen Fort: भारत भूमि मे आपको एक से बढ़कर एक किले देखने को मिलेंगे जो अपने प्राचीन रहस्यों से भरे पड़े हैं| देश के हर किले का एक गौरवशाली इतिहास है| इन्ही किलो मे से एक है रायसेन का किला जो सदियों पहले घटित हुई भयावह कहानियाँ अपने अंदर सिमेटे हुए है|
ऐसा माना जाता है की इस किले का निर्माण 1200 ईस्वी मे 800 साल पहले परमार राजवंश के राजा राय पिथौरा ने करवाया था जो 1 किलोमीटर के क्षेत्र मे फैला हुआ है| इस किले की वास्तुकला कितनी अद्भुत होगी ये आप इस किले को देखकर समझ सकते हैं जो सदियों निकल जाने के बाद आज भी सीना तानकर खड़ा है|
सुंदर बलुआ पत्थर से बना ये किला चारों तरफ से बड़ी-बड़ी चट्टानों से घिरा हुआ है| भोपाल रेलवे स्टेशन से 47 किलोमीटर और हबीबगंज स्टेशन से 45 किलोमीटर दूर ये किला 700 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थापित है| इस किले के मे आपको 9 द्वार और 13 बुर्ज देखने को मिलेंगे|
इस किले मे 1223 ईस्वी से 1754 ईस्वी तक लगातार 13 हमले हुए जिनको इल्तुतमिश, बलवन, जलालउद्दीन, अलाउद्दीन, मलिक काफूर, तुगलक, साहिब खान, हुमायू, शेरशाह सूरी, सुल्तान बाजबहादुर, अकबर, औरंगजेब और फैज मोहम्मद ने अंजाम दिया था|
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रायसेन किले का इतिहास
700 राजपूतानियों का जौहर
ये बात वर्ष 1532 की है तब इस किले पर राजा शिलादित्य का शासन था और उस समय रायसेन राज्य की सीमाएं उज्जैन को छूती थीं| राजा शिलादित्य का विवाह मेवाड़ के प्रसिद्ध योद्धा राणा संग्रामसिंह की बेटी महारानी दुर्गावती से सम्पन्न हुआ था और ये वही शिलादित्य थे जिन्होंने ने खनवा के युद्ध मे राणा संग्रामसिंह के साथ मिलकर आक्रमणकारी बाबर से युद्ध किया था|
इतिहासकारों की माने तो वर्ष 1531 मे गुजरात के मुस्लिम शासक बहादुर शाह से राजा शिलादित्य की संधि हो चुकी थी लेकिन फिर भी बहादुर शाह की घिनौनी नजर राजा शिलादित्य की धर्मपत्नी रानी दुर्गवाती और रायसेन के किले पर थी|
बहादुर शाह से संधि होने के बाद वो राजा शिलादित्य को अपने कैम्प मे बुलवाता है और धोखे से राजा शिलादित्य को बंदी बनाकर मांडू के जेल मे डाल देता है और इधर रायसेन किले को कब्जा करने की योजना बनाने लगता है| अब तक इस किले की देख रेख महारानी दुर्गवाती और उनके देवर और राजा शिलादित्य के भाई लक्ष्मण राय कर रहे थे|
इसी बीच बहादुर शाह कब्जे की चाहत से 17 जनवरी 1532 ईस्वी को रायसेन किले को चारों तरफ से घेर लेता है लेकिन लाख प्रयास करने के बाद भी वो किले मे सेंध नहीं लगा पाता| जब बहादुर शाह किले को जीतने मे असफल हो जाता है तो वो राजा शिलादित्य को मांडू की जेल से रिहा कर देता है|
जेल से रिहा होते ही राजा शिलादित्य रायसेन किले मे पहुंचते ही अपने भाई लक्ष्मण राय और धर्मपत्नी रानी दुर्गवाती से मुलाकात करते हैं और उस मुलाकात का सार ये निकलता है की हार तो तय है इसलिए युद्ध पूरे जोश से करना है|
मुस्लिम आक्रमणकारियों और राजपूतों के बीच युद्ध शुरू हो जाता है| चूंकि किले मे सीमित मात्रा मे अन्न का भंडार था इसलिए युद्ध को देखते हुए रायसेन की महिलाओं ने एक वक्त के भोजन का त्याग कर देती हैं| इस युद्ध मे राजा शिलादित्य वीरगति को प्राप्त होते हैं|
अपने पति की शहादत के बाद हार और फिर राजपूताना महिलाओं की इज्जत को देखते हुए महारानी दुर्गवाती 700 राजपूतानियों और उनके बच्चों के साथ जौहर करने की योजना बनती हैं| 6 मई 1532 ईसवीं को रानी दुर्गवाती ने भगवान शिव को याद करते हुए 700 राजपूत महिलाओं के साथ जौहर कुंड मे प्रवेश कर लिया जिसकी आग की लपटे दूर दूर तक देखी और महसूस की गई थी|
7 मई को सुबह एक बार फिर से हर हर महादेव के नारों के साथ लक्ष्मण राय के अगुवाई मे निर्णायक जंग होती है जिसमे लक्ष्मण राय भी वीरगति को प्राप्त होते हैं और आखिरकार 10 मई 1532 को बहादुर शाह का रायसेन के किले पर कब्जा हो जाता है|
राजा ने काटा रानी का सर
बहादुर शाह का कब्जा 10 मई 1532 से लेकर यहाँ कब तक था इसका इतिहास मे उल्लेख नहीं है| वर्ष 1543 मे यहाँ पर राजा पूरणमल का शासन था| शेरशाह सूरी की नजर भी इस किले पर थी और वो कई सालों से किले को कब्जाने की योजना बना रहा था|
1543 मे शेरशाह सूरी इस किले को चारों तरफ से घेर लेता है| शेरशाह सूरी इस किले को जीतने मे पूरी जान लगा देता है लेकिन 4 महीने की कड़ी घेराबंदी के बाद भी वो किले को कब्जाने मे असफल रहता है|
धीरे धीरे शेरशाह का सारा गोला बारूद खत्म होने लगा क्यूँ की इन विस्फोटक का इस्तेमाल किले की दीवारों पर किया गया था फिर वो अपने पास संग्रहित तांबे के सिक्कों को पिघलाकर तोप बनाता है| तोप की सहायता से शेरशाह सूरी इस किले को जीत लेता है|
लेकिन कुछ इतिहासकारों का कहना है तोप बनाने के अलावा उसने इस किले को जीतने मे कुछ छल कपट का भी सहारा लिया था| जब राजा पूरणमल को शेरशाह सूरी के किले को जीतने की खबर मिलती है तो राजा पूरणमल अपनी धर्मपत्नी महारानी रत्नावली की चिंता सताने लगी और उन्होंने महारानी की इज्जत बचाने के लिए उनका सर कलम कर दिया|
रायसेन किले मे स्थित शिव मंदिर
किले मे स्थित इस शिव मंदिर को बहुत प्राचीन माना जाता है| ऐसी किवंदिती है की इस मंदिर का निर्माण 10 वीं शताब्दी में परमार राजा उदयादित्य ने कराया था| जो भी हिन्दू राजा इस किले मे रहा वो महादेव की पूजा अर्चना करता रहा| इस मंदिर को सोमेश्वर धाम मंदिर के नाम से भी जानते हैं|
1543 मे जब शेरशाह सूरी ने किले को जीता तो उसने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने का आदेश दिया| आजादी के बाद वर्ष 1974 मे इस मंदिर को लेकर एक बड़ा जन आंदोलन हुआ उस समय मध्य प्रदेश मे कॉंग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी थे|
सेठी जी ने मंदिर का ताला खुलवाने मे अपना योगदान दिया वो इस किले मे महाशिवरात्रि के दिन आए और पूरे विधि विधान के साथ शिवलिंग को पुनः स्थापित किया| तब से इस मंदिर का ताला केवल महाशिवरात्रि के दिन केवल 12 घंटे के लिए ही खुलता है बाकी के साल मे 364 दिन ये मंदिर बंद रहता है|
महाशिवरात्रि के समय यहाँ पर मेला भी लगता है| एकदिन के लिए खुलने वाले इस मंदिर मे 50000 भक्त शिवलिंग के दर्शन करने आते है| वर्तमान समय मे इस शिवलिंग की देखरेख पुरातत्व विभाग करता है|
किले मे स्थित पारस पत्थर
ऐसा कहा जाता है इस किले मे एक समय राजा राजसेन का शासन था और उनके पास पारस का पत्थर था| पारस वो रत्न है जो पत्थर को सोना बना देता है| इस पत्थर की चाहत मे इस किले ने कई आक्रमण झेलें लेकिन एक युद्ध मे हार की वजह से पारस के गलत हाँथ मे जाने के डर से किले मे स्थित झील मे फेंक दिया|
अभी भी लोग इस किले मे चोरी छिपे घुसकर पारस पत्थर को ढूँढने का प्रयास करते हैं| हालाकी पुरातत्व विभाग को इस किले मे पारस पत्थर होने का आज तक कोई सबूत नहीं मिला है|
दुनिया का सबसे पुराना वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम
इस किले मे आपको दुनिया का सबसे पुराना वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम देखने को मिलेगा जो की 1000 साल पुराना है| लगभग 10 वर्ग किलोमीटर मे फैले इस किले मे पहाड़ी मे गिरने वाले बारिश के पानी को छोटी छोटी सकरी नालियों के द्वारा एक बड़े कुंड मे जमा किया जाता है|
बारिश के पानी को ज्यादा से ज्यादा मात्रा मे सहेजने के लिए यहाँ पर आपको 4 बड़े और 84 छोटे कुंड मिलेंगे| इस किले मे बारिश का पानी बहुत ज्यादा मात्रा मे इकट्ठा होता है जो सालभर की पानी की जरूरतों को पूरा करता है|
किले मे स्थित साउन्ड सिस्टम
किले मे स्थित इत्र दान महल मे एक ईको साउंड सिस्टम मौजूद है| इत्र दान महल मे स्थित 2 दीवारों के बीच लगभग 20 फीट है लेकिन आप एक दीवार मे कुछ भी बोलेंगे तो आपको विपरीत दिशा मे स्थित दीवार से वो आवाज सुनाई देगी| ये साउन्ड सिस्टम कैसे बना ये आज भी शोध का विषय है|
किले मे स्थित महल
इस किले मे आपको 4 सुंदर महल देखने को मिलेंगे जीने नाम बादल महल, रोहिणी महल, इतरादान महल और हवा महल हैं| हवा महल मे एक बड़ा तालाब है जिसका इस्तेमाल शायद किले की रानियाँ करती थी|
कैसे पहुंचे रायसेन
रायसेन का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भोपाल का है जो रायसेन से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है| अगर आप फ्लाइट से रायसेन पहुंचना चाहते हैं तो आपको 65 किलोमीटर दूर भोपाल के राजा भोज हवाई अड्डे मे उतरना होगा| अगर आप भोपाल के लिए रेलवे टिकट बुक करना चाहते हैं तो यहाँ पर क्लिक करें|
रायसेन फोर्ट की भोपाल से दूरी (Raisen Fort Distance From Bhopal)
इस किले की भोपल से दूरी लगभग 50 किलोमीटर है|
रायसेन किले का समय (Raisen Fort Timings)
इस किले को घूमने का समय सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक का रहता है|
Q1- रायसेन का किला (Raisen Fort) क्यों प्रसिद्ध है?
A- इस किले मे आपको दुनिया का सबसे पुराना वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम देखने को मिलेगा|
Q2- रायसेन के किले (Raisen Fort) का राजा कौन था??
A- इस किले मे अलग अलग समय मे भिन्न भिन्न राजाओं ने शासन किया|
Q3- रायसेन किले (Raisen Fort) मे शिव मंदिर क्यों बंद है?
A- विवाद के कारण ये मंदिर बंद है फिलहाल ये केवल महाशिवरात्रि के दिन मात्र 12 घंटे के लिए खुलता है|
Q4- रायसेन किले (Raisen Fort) मे कितनी महिलाओं ने जौहर किया था?
A- 700 महिलाओं ने|
Q5- रायसेन किले (Raisen Fort) मे किस राज्य ने अपनी रानी का सर काटा था?
A- राजा पुरनमल ने|